পর্ব -৩ বিধান পরিবর্তনকারী শাসকের বিপক্ষে বিদ্রোহ
গত দুই পর্বে আমরা নামায তরককারী শাসকের বিপক্ষে যুদ্ধের বিধান বর্ণণা করেছি, এই পর্বে ইনশাআল্লাহ মুসলিম নামধারী যে শাসকরা কুরআন-সুন্নাহ অনুযায়ী রাষ্ট্র পরিচালনা করে না তাদের বিরুদ্ধে বিদ্রোহের বিধান নিয়ে আলোচনা করবো, এক্ষেত্রে আমাদের আলোচ্য বিষয় হবে বিধান পরিবর্তন শাসকের বিপক্ষে বিদ্রোহের ব্যাপারে কুরআন-সুন্নাহ ও উলামায়ে কেরামের বক্তব্য থেকে দলিল-প্রমাণ পেশ করা, বাকী এ কাজটা কুফর কি না? আলেমগণ এমন শাসককে কাফের বলেছেন কি না? এ ব্যাপারে আমরা এ প্রবন্ধে কোন আলোচনা করবো না।
ফতোয়া: যে শাসক কুরআন-সুন্নাহ অনুযায়ী দেশ শাসন করে না। বরং কুরআন-সুন্নাহর পরিবর্তে মানবরচিত আইন দ্বারা শাসন করে -তাকে কাফের-মুরতাদ বলা হোক না হোক সর্বাবস্থায়- তার বিপক্ষে বিদ্রোহ করা ফরয।
ফতোয়ার দলিল:-
এক. কুরআন থেকে বিধান পরিবর্তনকারী শাসকের বিপক্ষে যুদ্ধ ফরয হওয়ার দলিল-
প্রথম দলিল :
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا اللَّهَ وَذَرُوا مَا بَقِيَ مِنَ الرِّبَا إِنْ كُنْتُمْ مُؤْمِنِينَ. (سورة البقرة: 278)
হে ইমানদারগণ, তোমরা যদি মুমিন হয়ে থাকো, তবে আল্লাহকে ভয় করো এবং (লোকদের নিকট এখনোও) তোমাদের যে সুদ পাওনা আছে তা ছেড়ে দাও। -সুরা বাকারা, ২৬৮
শাইখুল ইসলাম ইবনে তাইমিয়্যাহ রহ. বলেন,
هذه الآية نزلت في أهل الطائف لما دخلوا في الإسلام والتزموا الصلاة والصيام؛ لكن امتنعوا من ترك الربا. فبين الله أنهم محاربون له ولرسوله إذا لم ينتهوا عن الربا. والربا هو آخر ما حرمه الله وهو مال يؤخذ برضا صاحبه. فإذا كان هؤلاء محاربين لله ورسوله يجب جهادهم فكيف بمن يترك كثيرا من شرائع الإسلام أو أكثرها كالتتار.
وقد اتفق علماء المسلمين على أن الطائفة الممتنعة إذا امتنعت عن بعض واجبات الإسلام الظاهرة المتواترة فإنه يجب قتالها، إذا تكلموا بالشهادتين وامتنعوا عن الصلاة، والزكاة، أو صيام شهر رمضان، أو حج البيت العتيق، أو عن الحكم بينهم بالكتاب والسنة، أو عن تحريم الفواحش، أو الخمر، أو نكاح ذوات المحارم، أو عن استحلال النفوس والأموال بغير حق، أو الربا، أو الميسر، أو عن الجهاد للكفار، أو عن ضربهم الجزية على أهل الكتاب، ونحو ذلك من شرائع الإسلام، فإنهم يقاتلون عليها حتى يكون الدين كله لله ... (مجموع الفتاوى: 28 : 544 – 545 ط. مجمع فهد لطباعة المصحف الشريف: 1416هـ)
.وقد اتفق علماء المسلمين على أن الطائفة الممتنعة إذا امتنعت عن بعض واجبات الإسلام الظاهرة المتواترة فإنه يجب قتالها، إذا تكلموا بالشهادتين وامتنعوا عن الصلاة، والزكاة، أو صيام شهر رمضان، أو حج البيت العتيق، أو عن الحكم بينهم بالكتاب والسنة، أو عن تحريم الفواحش، أو الخمر، أو نكاح ذوات المحارم، أو عن استحلال النفوس والأموال بغير حق، أو الربا، أو الميسر، أو عن الجهاد للكفار، أو عن ضربهم الجزية على أهل الكتاب، ونحو ذلك من شرائع الإسلام، فإنهم يقاتلون عليها حتى يكون الدين كله لله ... (مجموع الفتاوى: 28 : 544 – 545 ط. مجمع فهد لطباعة المصحف الشريف: 1416هـ)
এই আয়াতটি অবতীর্ণ হয় তায়েফবাসীর ব্যাপারে, যখন তারা ইসলামগ্রহণ করে এবং নামায-রোযাও পালন করতে শুরু করে। কিন্তু তারা সুদভিত্তিক লেনদেন ছেড়ে দিতে অস্বীকৃতি জানায়। তখন আল্লাহ তায়ালা জানিয়ে দেন যে, যদি তারা সুদী মুয়ামালা পরিত্যাগ না করে তাহলে তারা আল্লাহ ও তার রাসূলের সাথে যুদ্ধে লিপ্ত। অথচ সুদকে আল্লাহ তায়ালা সর্বশেষে নিষিদ্ধ করেছেন এবং সুদ অন্যের সন্তুষ্টক্রমেই নেওয়া হয়। সুতরাং যদি সুদগ্রহণকারীরাই আল্লাহ ও তার রাসূলের সাথে যুদ্ধে লিপ্ত হয়, তাদের বিপক্ষে যুদ্ধ ওয়াজিব হয়ে যায়, তাহলে তাতারদের মত যারা শরিয়তের অনেক বা অধিকাংশ বিধান পালনে অস্বীকৃতি জানায় তাদের কথা তো বলাইবাহুল্য।
উলামায়ে কেরাম এ ব্যাপারে একমত যে, যদি কোন সংঘবদ্ধ দল ইসলামের প্রকাশ্য ও স্বতস্বিদ্ধ কোন বিধান ত্যাগ করে, তবে সেই দলের বিরুদ্ধে যুদ্ধ করা আবশ্যক। এমনকি যদি তারা কালিমায়ে শাহাদাতের সাক্ষ্যও দেয় কিন্তু নামায, রোযা, হজ, যাকাত আদায় থেকে বিরত থাকে কিংবা নিজেদের মাঝে কুরআন-সুন্নাহর আইন প্রয়োগে অস্বীকৃতি জানায়, মদ, জুয়া, সুদ, যিনা, মাহরামকে বিবাহ করা, অন্যায়ভাবে কারো জান-মাল নষ্ট করা ইত্যাদি বিষয়কে নিষিদ্ধ করতে অস্বীকৃতি জানায়, কিংবা কাফিরদের বিরুদ্ধে যুদ্ধ করা, ওদের উপর জিযিয়া আরোপ করা থেকে বিরত থাকে তবে এই দলের বিরুদ্ধে যুদ্ধ করতে হবে। যতক্ষণ না শুধুমাত্র আল্লাহর দ্বীন সম্পূর্ণভাবে প্রতিষ্ঠিত হয়। -মাজমুউল ফাতাওয়া, ২৮/৫৪৪-৫৪৫
দ্বিতীয় দলিল:
قَاتِلُوا الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِاللَّهِ وَلَا بِالْيَوْمِ الْآخِرِ وَلَا يُحَرِّمُونَ مَا حَرَّمَ اللَّهُ وَرَسُولُهُ وَلَا يَدِينُونَ دِينَ الْحَقِّ مِنَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ حَتَّى يُعْطُوا الْجِزْيَةَ عَنْ يَدٍ وَهُمْ صَاغِرُونَ. (سورة التوبة : 29)
তোমরা যুদ্ধ করো আহলে কিতাবদের সাথে, যারা আল্লাহ ও শেষ দিবসের প্রতি বিশ্বাস রাখে না, আল্লাহ তায়ালা কর্তৃক নিষিদ্ধ বিষয়গুলোকে হারাম সাব্যস্ত করে না, এবং সত্যদিনের অনুসরণ করে না, যতক্ষণ না তারা লাঞ্চিত-অপদস্থ হয়ে নিজ হাতে জিযয়া প্রদান করে। -সুরা তাওবা, আয়াত, ২৯
বিখ্যাত মুফাসসির ইমাম ফখরুদ্দীন রাযি রহ. বলেন,
اعلم أنه تعالى ذكر أن أهل الكتاب إذا كانوا موصوفين بصفات أربعة ، وجبت مقاتلتهم إلى أن يسلموا، أو إلى أن يعطوا الجزية.
فالصفة الأولى : أنهم لا يؤمنون بالله .....
والصفة الثانية : من صفاتهم أنهم لا يؤمنون باليوم الآخر .....
الصفة الثالثة : من صفاتهم قوله تعالى : {وَلاَ يُحَرِمُونَ مَا حَرَّمَ الله وَرَسُولُهُ} وفيه وجهان : الأول : أنهم لا يحرمون ما حرم في القرآن وسنة الرسول . والثاني : قال أبو روق : لا يعملون بما في التوراة والإنجيل، بل حرفوهما وأتوا بأحكام كثيرة من قبل أنفسهم.
الصفة الرابعة : قوله : {وَلاَ يَدِينُونَ دِينَ الحق مِنَ الذين أُوتُواْ الكتاب}
(تفسير الرازي: 16 : 25 ط. دار إحياء التراث العربي: 1420 هـ).
فالصفة الأولى : أنهم لا يؤمنون بالله .....
والصفة الثانية : من صفاتهم أنهم لا يؤمنون باليوم الآخر .....
الصفة الثالثة : من صفاتهم قوله تعالى : {وَلاَ يُحَرِمُونَ مَا حَرَّمَ الله وَرَسُولُهُ} وفيه وجهان : الأول : أنهم لا يحرمون ما حرم في القرآن وسنة الرسول . والثاني : قال أبو روق : لا يعملون بما في التوراة والإنجيل، بل حرفوهما وأتوا بأحكام كثيرة من قبل أنفسهم.
الصفة الرابعة : قوله : {وَلاَ يَدِينُونَ دِينَ الحق مِنَ الذين أُوتُواْ الكتاب}
(تفسير الرازي: 16 : 25 ط. دار إحياء التراث العربي: 1420 هـ).
আল্লাহ তায়ালা আয়াতে বলছেন, আহলে কিতাবরা চারটা অপরাধে অপরাধী হওয়ার কারণে তাদের সাথে যুদ্ধ করা ওয়াজিব হয়ে গেছে,
এক. তারা আল্লাহ তায়ালার প্রতি ঈমান রাখে না ….
দুই. শেষ দিবসকে বিশ্বাস করে না …..
তিন. “আল্লাহ তায়ালা কর্তৃক নিষিদ্ধ বিষয়গুলোকে হারাম সাব্যস্ত করে না”। এর দুটি ব্যাখা হতে পারে,
ক. তারা কুরআন-সুন্নাহয় নিষিদ্ধ বিষয়গুলোকে হারাম সাব্যস্ত করে না।
খ. তারা তাওরাত-ইনজীলের বিধান অনুযায়ী আমল করে না। বরং তারা সেগুলোকে বিকৃত করেছে এবং নিজেরা মনগড়া অনেক বিধান প্রণয়ন করেছে।
চার. তারা সত্যদিনের অনুসরণ করে না। …..
দেখুন, আয়াতে আল্লাহ তায়ালা ইহুদী-খৃষ্টানদের সাথে যুদ্ধের একটা কারণ হিসেবে উল্লেখ করছেন যে, তারা আল্লাহ তায়ালার নিষিদ্ধ বিষয়গুলোকে হারাম সাব্যস্ত করে না এবং নিজেদের মনগড়া বিভিন্ন আইন তৈরী করে। তাহলে যদি আল্লাহ তায়ালার বিধান না মেনে নিজেদের মনগড়া কিছু বিধানের অনুসরণের কারণে কাফের-মুশরিকদের সাথেই যুদ্ধ করা আবশ্যক হয় তাহলে যে মুসলিম শাসকবর্গ আল্লাহ তায়ালার বিধানকে সম্পূর্ণরুপে বাদ দিয়ে কাফের-মুশরিকদের তৈরী বিধান অনুযায়ী দেশ পরিচালনা করছে তাদের বিরুদ্ধে যুদ্ধ করা কি ওয়াজিব হবে না?
সাইয়েদ কুতুব রহ. এই বাস্তবতাটি অতি সুন্দর ভাষায় ফুটিয়ে তুলেছেন, তিনি বলেন,
هذه الآية – والآيات التالية لها في السياق – كانت تمهيداً لغزوة تبوك؛ ومواجهة الروم وعمالهم من الغساسنة المسيحيين العرب . . وذلك يلهم أن الأوصاف الواردة فيها هي صفات قائمة بالقوم الموجهة إليهم الغزوة؛ وأنها إثبات حالة واقعة بصفاتها القائمة . وهذا ما يلهمه السياق القرآني في مثل هذه المواضع . . فهذه الصفات القائمة لم تذكر هنا على أنها شروط لقتال أهل الكتاب؛ إنما ذكرت على أنها أمور واقعة في عقيدة هؤلاء الأقوام وواقعهم؛ وأنها مبررات ودوافع للأمر بقتالهم. ومثلهم في هذا الحكم كل من تكون عقيدته وواقعه كعقيدتهم وواقعهم . .
وقد حدد السياق من هذه الصفات القائمة :
أولاً : أنهم لا يؤمنون بالله ولا باليوم الآخر.
ثانياً : أنهم لا يحرمون ما حرم الله ورسوله.
ثالثاً : أنهم لا يدينون دين الحق.
ثم بين في الآيات التالية كيف أنهم لا يؤمنون بالله ولا باليوم الآخر ، ولا يحرمون ما حرم الله ورسوله ولا يدينون دين الحق(في ظلال القرآن: تفسير سورة التوبة، 3 : 1631 ط. : دار الشروق: 1412 هـ).
وقد حدد السياق من هذه الصفات القائمة :
أولاً : أنهم لا يؤمنون بالله ولا باليوم الآخر.
ثانياً : أنهم لا يحرمون ما حرم الله ورسوله.
ثالثاً : أنهم لا يدينون دين الحق.
ثم بين في الآيات التالية كيف أنهم لا يؤمنون بالله ولا باليوم الآخر ، ولا يحرمون ما حرم الله ورسوله ولا يدينون دين الحق(في ظلال القرآن: تفسير سورة التوبة، 3 : 1631 ط. : دار الشروق: 1412 هـ).
এই আয়াত ও এর পরবর্তী আয়াতসমূহ তাবুক যুদ্ধ এবং রোম ও তাদের দোসর আরব খৃষ্টানদের সাথে যুদ্ধের ভূমিকাস্বরুপ অবতীর্ণ হয়েছে। এ থেকে বুঝে আসে, যাদের সাথে যুদ্ধ করার জন্য অভিযান পরিচালনা করা হচ্ছে আয়াতে উল্লিখিত অবস্থাগুলো ওদের মধ্যে বিদ্যমান ছিল, … বিষয়গুলো এজন্য উল্লেখ করা হয়নি যে, এগুলো ইহুদী-খৃষ্টানদের সাথে যুদ্ধ বৈধ হওয়ার জন্য শর্ত। বরং এগুলো হলো তাদের বাস্তব আকিদা-বিশ্বাস ও কর্মপদ্ধতির বিবরণ এবং তাদের সাথে যু্দ্ধের আদেশ দেওয়ার কারণ বা অনুঘটক। সুতরাং যাদের আকিদা-বিশ্বাস ও কর্মনীতি এরুপ হবে তাদের ক্ষেত্রেও একই হুকুম প্রযোজ্য হবে।-ফি যিলালিল কুরআন, ৩/১৬৩১
অন্যত্র তিনি বলেন,
إنها مبررات تقرير ألوهية الله في الأرض، وتحقيق منهجه في حياة الناس؛ ومطاردة الشياطين ومناهج الشياطين؛ وتحطيم سلطان البشر الذي يتعبد الناس، والناس عبيد الله وحده لا يجوز أن يحكمهم أحد من عباده بسلطان من عند نفسه وبشريعة من هواه ورأيه .....
إنها مبررات التحرير العام للإنسان في الأرض، بإخراج الناس من العبودية للعباد إلى العبودية لله وحده بلا شريك. ...
ولقد كانت هذه المبررات ماثلة في نفوس الغزاة من المسلمين، فلم يُسأل أحد منهم عما أخرجه للجهاد فيقول:خرجنا ندافع عن وطننا المهدد! أو خرجنا نصد عدوان الفرس أو الروم علينا نحن المسلمين! أو خرجنا نوسع رقعتنا ونستكثر من الغنيمة!
لقد كانوا يقولون كما قال ربعي بن عامر، وحذيفة بن محصن، والمغيرة بن شعبة جميعاً لرستم – قائد جيش الفرس في القادسية -، وهو يسألهم واحداً بعد واحد في ثلاثة أيام متوالية قبل المعركة:ما الذي جاء بكم؟ فيكون الجواب:الله ابتعثنا لنخرج من شاء من عبادة العباد إلى عبادة الله وحده، ومن ضيق الدنيا إلى سعتها، ومن جور الأديان إلى عدل الإسلام. فأرسل رسوله بدينه إلى خلقه، فمن قبله منا قبلنا منه ورجعنا عنه، وتركناه وأرضه. ومن أبى قاتلناه حتى نفضي إلى الجنة أو الظفر . (في ظلال القرآن: تفسير سورة الأنفال، 3 : 1440 ؛ وراجع لهذه الحكاية: تاريخ الطبري: 517 - 524 ط. دار التراث: 1387 هـ ؛ البداية والنهاية: 7 : 46 ط. دار إحياء التراث العربي: 1408، هـ ؛ وحياة الصحابة للشيخ العلام يوسف الكاندهلوي: 1 : 257 - 259 ط. مؤسسة الرسالة الأولى، 1420 هـ)
إنها مبررات التحرير العام للإنسان في الأرض، بإخراج الناس من العبودية للعباد إلى العبودية لله وحده بلا شريك. ...
ولقد كانت هذه المبررات ماثلة في نفوس الغزاة من المسلمين، فلم يُسأل أحد منهم عما أخرجه للجهاد فيقول:خرجنا ندافع عن وطننا المهدد! أو خرجنا نصد عدوان الفرس أو الروم علينا نحن المسلمين! أو خرجنا نوسع رقعتنا ونستكثر من الغنيمة!
لقد كانوا يقولون كما قال ربعي بن عامر، وحذيفة بن محصن، والمغيرة بن شعبة جميعاً لرستم – قائد جيش الفرس في القادسية -، وهو يسألهم واحداً بعد واحد في ثلاثة أيام متوالية قبل المعركة:ما الذي جاء بكم؟ فيكون الجواب:الله ابتعثنا لنخرج من شاء من عبادة العباد إلى عبادة الله وحده، ومن ضيق الدنيا إلى سعتها، ومن جور الأديان إلى عدل الإسلام. فأرسل رسوله بدينه إلى خلقه، فمن قبله منا قبلنا منه ورجعنا عنه، وتركناه وأرضه. ومن أبى قاتلناه حتى نفضي إلى الجنة أو الظفر . (في ظلال القرآن: تفسير سورة الأنفال، 3 : 1440 ؛ وراجع لهذه الحكاية: تاريخ الطبري: 517 - 524 ط. دار التراث: 1387 هـ ؛ البداية والنهاية: 7 : 46 ط. دار إحياء التراث العربي: 1408، هـ ؛ وحياة الصحابة للشيخ العلام يوسف الكاندهلوي: 1 : 257 - 259 ط. مؤسسة الرسالة الأولى، 1420 هـ)
এবিষয়গুলো হলো পৃথিবীতে আল্লাহর রাজত্ব প্রতিষ্ঠা, আল্লাহ প্রদত্ত জীবনবিধান বাস্তবায়ন, শয়তানের অনুসারী ও তাদের রচিত জীবনবিধান দূরীকরণ এবং যারা মানুষকে গোলাম বানায় তাদের ক্ষমতা ভেঙ্গে চুরমার করে দেওয়ার কারণ ও প্রেরণা। কেননা মানুষ শুধু আল্লাহর গোলাম, সুতরাং কেউ মানুষকে নিজের মনগড়া বিধিবিধান দ্বারা শাসন করতে পারবে না।
এ বিষয়গুলো হলো মানুষকে মানুষের গোলামীর জিঞ্জির থেকে মুক্ত করে একমাত্র আল্লাহ তায়ালার দাসত্বের দিকে নিয়ে আসার মাধ্যমে তাকে প্রকৃত স্বাধীনতা দেওয়ার যৌক্তিকতা ও কারণ। এ যৌক্তিকতা ও প্রেরণা মুসলিম যোদ্ধাদের মনে গেথে গিয়েছিল, তাই তাদের কাউকে যখন প্রশ্ন করা হতো, তোমরা কেন যুদ্ধ করতো এসেছো? তখন তাদের কেউ এ উত্তর দিতো না যে, আমরা মাতৃভূমি রক্ষার জন্য জিহাদে বের হয়েছি, কিংবা আমাদের উপর রোম-পারস্যের আগ্রাসন রোধ করার জন্য ময়দানে নেমেছি, অথবা রাজ্যবিস্তার ও গণীমত লাভ করার জন্য যুদ্ধে এসেছি।
বরং তাদের সবাই একবাক্যে সেই উত্তরই দিতো যা রিবয়ী বিন আমের, হুযাইফা বিন মিহসন এবং মুগীরা বিন শোবা রাযি. পারস্যের সেনাপতি রুস্তমকে দিয়েছিলেন, সে লাগাতার তিনদিন পর্যন্ত একজন একজন করে এই তিন মুসলিম দূতকে জিজ্ঞাসা করে, তোমরা কেন এসেছো? জবাবে তারা সকলেই বলে, আমরা আল্লাহর আদেশে বের হয়েছি- মানুষকে মানুষের গোলামী থেকে মুক্ত করে শুধু এক আল্লাহর ইবাদতের দিকে নিয়ে আসার জন্য, দুনিয়ার সংকীর্ণতা থেকে আখেরাতের প্রশস্ততার দিকে বের করে আনার জন্য এবং সকল ধর্মের যুলুম-অত্যাচারমূলক বিধান থেকে মুক্ত করে ইসলামের আদল ও ইনসাফভিত্তিক বিধি-বিধানের ছায়াতলে নিয়ে আসার জন্য। আল্লাহ তার দ্বীন দিয়ে রাসূল প্রেরণ করেছেন, যারা এ দ্বীনগ্রহণ করবে আমরা তাদের ভূমি তাদের হাতে ছেড়ে দিয়ে ফিরে যাবো, আর যারা (ইসলামগ্রহণ বা জিযিয়া দিয়ে ইসলামের বশ্যতা) গ্রহণ করতে অস্বীকার করবে আমরা তাদের সাথে যুদ্ধ করবো, যতক্ষণ না আমরা বিজয় লাভ করি কিংবা শাহাদাত লাভ করতে জান্নাতে পৌঁছতে পারি।– ফি যিলালিল কুরআন, ৩/১৪০ রিবয়ী বিন আমের ও তার সঙ্গী সাহাবীদের ঘটনাটি জানার জন্য দেখুন, তারিখুল উমামি ওয়াল মুলুক, ইমাম তবারী, ৫১৭-৫২৪ আলবিদায়া ওয়াননিহায়া, ইবনে কাসীর, ৭/৪৬ হায়াতুস সাহাবা, ইউসুফ কান্ধলবী, ১/২৫৭
সুন্নাহ থেকে দলিল:
প্রথম দলিল:
عن يحيى بن حصين، عن جدته أم الحصين، قال: سمعتها تقول: ... قال رسول الله صلى الله عليه وسلم قولا كثيرا، ثم سمعته يقول: «إن أمر عليكم عبد مجدع - حسبتها قالت - أسود، يقودكم بكتاب الله تعالى، فاسمعوا له وأطيعوا». رواه مسلم: (1298)
وفي رواية : إن أمر عليكم عبد مجدع - قال: أراها قالت - أسود يُقِيْمَ فيكم كتابَ الله فاسمعوا وأطيعوا. أخرجه أبو عوانه في صحيحه (3553، 7100)
وفي رواية : «يأخذكم بكتاب الله». أخرجه أبو عوانه في صحيحه أيضا (7097)
وفي رواية : يا أيها الناس، اتقوا الله واسمعوا وأطيعوا، وإن أمر عليكم عبد حبشي مجدع ما أقام فيكم كتاب الله عز وجل. أخرجه أحمد في مسنده: (16649) والترمذي في جامعه (1706)، وقال الترمذي: (هذا حديثٌ حسن صحيح). وقال الشيخ شعيب الأرنؤوط في تعليقه على المسند: (إسناده صحيح على شرط مسلم، رجاله ثقات رجال الشيخين، غير أن يحيى بن حصين وأمه- يعني جدته أم الحصين- لم يخرج لهما سوى مسلم)
وفي رواية : «ما أقام لكم دين الله». أخرجه إسحاق بن راهويه في مسنده: (2391) وقال محققه: (إسناده صحيح رجاله ثقات كلهم).
قال الشيخ عبد الحق الدهلوي(يقودكم بكتاب الله) أي: يأمركم بدين الله ويحكم به. (لمعات التنقيح: 6/449 ط. دار النوادر، 1435 هـ.
وقال الشيخ المباركفوري: قوله : (ما أقام لكم كتاب الله) أي حكمه المشتمل على حكم الرسول. (تحفة الأحوذي5 : 297 ط. دار الكتب العلمية).
وفي رواية : إن أمر عليكم عبد مجدع - قال: أراها قالت - أسود يُقِيْمَ فيكم كتابَ الله فاسمعوا وأطيعوا. أخرجه أبو عوانه في صحيحه (3553، 7100)
وفي رواية : «يأخذكم بكتاب الله». أخرجه أبو عوانه في صحيحه أيضا (7097)
وفي رواية : يا أيها الناس، اتقوا الله واسمعوا وأطيعوا، وإن أمر عليكم عبد حبشي مجدع ما أقام فيكم كتاب الله عز وجل. أخرجه أحمد في مسنده: (16649) والترمذي في جامعه (1706)، وقال الترمذي: (هذا حديثٌ حسن صحيح). وقال الشيخ شعيب الأرنؤوط في تعليقه على المسند: (إسناده صحيح على شرط مسلم، رجاله ثقات رجال الشيخين، غير أن يحيى بن حصين وأمه- يعني جدته أم الحصين- لم يخرج لهما سوى مسلم)
وفي رواية : «ما أقام لكم دين الله». أخرجه إسحاق بن راهويه في مسنده: (2391) وقال محققه: (إسناده صحيح رجاله ثقات كلهم).
قال الشيخ عبد الحق الدهلوي(يقودكم بكتاب الله) أي: يأمركم بدين الله ويحكم به. (لمعات التنقيح: 6/449 ط. دار النوادر، 1435 هـ.
وقال الشيخ المباركفوري: قوله : (ما أقام لكم كتاب الله) أي حكمه المشتمل على حكم الرسول. (تحفة الأحوذي5 : 297 ط. دار الكتب العلمية).
ইয়াহইয়া বিন হাসীন বলেন, আমি আমার দাদী থেকে শুনেছি, তিনি বলেন, আমি রাসূল সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়া সাল্লামকে বিদায় হজ্জ্বে বলতে শুনেছি, যদি কোনো নাক-ঠোট কাটা হাবশী গোলামকেও তোমাদের দায়িত্বশীল নিয়োগ করা হয়, যে তোমাদেরকে কিতাবুল্লাহ অনুযায়ী পরিচালনা করে, তাহলে তোমরা তার আনুগত্য করবে। -সহিহ মুসলিম, ১২৯৮
মুসনাদে আহমদ ও জামে’ তিরমিযির বর্ণণায় এভাবে এসেছে, “তোমরা তার আনুগত্য করবে যতক্ষণ পর্যন্ত সে তোমাদের মাঝে কুরআন-সুন্নাহর বিধান কায়েম করবে।” -জামে তিরমিযি, ১৭০৬ ; মুসনাদে আহমদ, ১৬৬৪৯
মুসনাদে ইসহাকের বর্ণণায় এভাবে এসেছে, “তোমরা তার আনুগত্য করবে যতক্ষণ পর্যন্ত সে তোমাদের জন্য দ্বীন প্রতিষ্ঠা করবে”। -মুসনাদে ইসহাক, ২৩৯১
কাযী ইয়ায রহিমাহুল্লাহ (মৃ: ৫৪৪ হি.) উল্লিখিত হাদিসের ব্যাখ্যায় বলেন,
قوله: "عبدا حبشيا يقودكم بكتاب الله" أى بالإسلام وحكم كتاب الله، وإن جار. (إكمال المعلم: 6 : 265 ط. دار الوفاء: 1419).
“তোমাদেরকে আল্লাহর কিতাব অনুযায়ী পরিচালনা করে, অর্থাৎ ইসলাম ও কোরআন-সুন্নাহর বিধান দ্বারা পরিচালনা করে, যদিও সে যুলুম করে” (তথাপি তোমরা তার আনুগত্য করো)। -ইকমালুল মু’লিম, ৬/২৬৫
দ্বিতীয় দলিল:
عن أبي هريرة، قال: لما توفي رسول الله صلى الله عليه وسلم واستخلف أبو بكر بعده وكفر من كفر من العرب، قال عمر، لأبي بكر: كيف تقاتل الناس، وقد قال رسول الله صلى الله عليه وسلم: أمرت أن أقاتل الناس حتى يقولوا لا إله إلا الله، فمن قال: لا إله إلا الله، عصم مني ماله ونفسه، إلا بحقه وحسابه على الله، فقال أبو بكر رضي الله عنه: لأقاتلن من فرق بين الصلاة والزكاة، فإن الزكاة حق المال، والله لو منعوني عقالا كانوا يؤدونه إلى رسول الله صلى الله عليه وسلم لقاتلتهم على منعه قال عمر، رضي الله عنه: «فوالله ما هو إلا أن رأيت الله شرح صدر أبي بكر للقتال، فعرفت أنه الحق». صحيح البخاري: (2443) صحيح مسلم: (20)
আবু হুরাইরা রাযি. বলেন, রাসুল সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামের মৃত্যুর পর যখন আবু বকর খলীফা নিয়োজিত হন এবং আরবরা ব্যাপকভাবে মুরতাদ হয়ে যায় তখন উমর রাযি. বলেন, আপনি কিভাবে তাদের সাথে যুদ্ধ করবেন অথচ (তারা যাকাত প্রদানে অস্বীকৃতি জানালেও কালেমা তো পড়েছে আর) রাসুল সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম বলেছেন, আমাকে মানুষের সাথে যুদ্ধের আদেশ করা হয়েছে যতক্ষণ না তারা কালেমা পড়ে, সুতরাং যে কালেমা পড়বে সে তার জানমাল আমার থেকে নিরাপদ করে নিল, তবে সে ইসলামের কোন হক বিনষ্ট করলে ভিন্ন কথা। আর তার হিসাব তো আল্লাহ তায়ালাই নিবেন। তখন আবু বকর রাযি. বললেন, যারা নামায-রোযার মধ্যে পার্থক্য করবে আমি তাদের সাথে যুদ্ধ করবোই, কেননা যাকাত হলো সম্পদের হক। আল্লাহর শপথ যদি তারা আমাকে একটি রশিও না দেয় যা তারা রাসুলের নিকট যাকাত হিসেবে প্রেরণ করতো তবুও আমি তাদের সাথে যুদ্ধ করবো। উমর রাযি. বলেন, (আবু বকরের কথা শুনে) আমি বুঝতে পারি আল্লাহ তায়ালা আবু বকরের অন্তরকে যু্দ্ধের জন্য খুলে দিয়েছেন, সুতরাং তাঁর মতই সঠিক। -সহিহ বুখারী, ২৪৪৩ সহিহ মুসলিম, ২০
ইমাম নববী রহ. বলেন,
وفيه وجوب قتال ما نعى الزكاة أو الصلاة أو غيرهما من واجبات الاسلام قليلا كان أو كثيرا لقوله رضى الله عنه: «لو منعونى عقالا أو عناقا». (شرح النووي على مسلم: 1 : 212 ط. دار إحياء التراث العربي: 1392 هـ.)
এ হাদিস প্রমাণ করে, যারা নামায পড়তে বা যাকাত দিতে অস্বীকৃতি জানাবে তাদের সাথে যুদ্ধ করা ওয়াজিব, তেমনিভাবে যারা ইসলামের আবশ্যকীয় বিধানগুলো পালনে অস্বীকৃতি জানাবে তাদেরও একই হুকুম। চাই তা কম হোক বা বেশি, কেননা আবু বকর রাযি. বলেছেন, যদি তারা আমাকে একটা রশি বা একটা বকরীর বাচ্চাও (যাকাত হিসেবে) দিতে অস্বীকৃতি জানায় তাহলে তাদের সাথে আমি যুদ্ধ করবো। -শরহু মুসলিম, ১/২১২
ইমাম বুখারী এই হাদিসের শিরোনাম দিয়েছেন এভাবে,
باب قتل من أبى قبول الفرائض
যারা ফারায়েয কবুল করতে অস্বীকৃতি জানাবে তাদের হত্যা করার বিধান। -সহিহ বুখারী, ১২/২৭৫ দারুল মা’রেফা। এর ব্যাখায় হাফেয ইবনে হাযার বলেন,
أي جواز قتل من امتنع من التزام الأحكام الواجبة والعمل بها قال المهلب: من امتنع من قبول الفرائض نظر فإن أقر بوجوب الزكاة مثلا أخذت منه قهرا ولا يقتل، فإن أضاف إلى امتناعه نصب القتال قوتل إلى أن يرجع، قال مالك في الموطأ: الأمر عندنا فيمن منع فريضة من فرائض الله تعالى فلم يستطع المسلمون أخذها منه كان حقا عليهم جهاده، قال ابن بطال: مراده إذا أقر بوجوبها لا خلاف في ذلك. (فتح الباري: 12 : 275 - 276ط. دار الفكر).
অর্থাৎ যারা ইসলামের আবশ্যকীয় বিধানাবলী পালনে অস্বীকৃতি জানাবে তাদের হত্যার বৈধতা। মুহাল্লাব বলেন, যদি কেউ ইসলামের কোন ফরয বিধান, যেমন যাকাত দিতে অস্বীকৃতি জানায় তাহলে যদি সে যাকাত ফরয হওয়ার বিষয়টিকে স্বীকার করে তাহলে তার থেকে জোরপূর্বক যাকাত উসুল করা হবে, তবে তাকে হত্যা করা যাবে না। কিন্তু যদি যাকাত দিতে অস্বীকৃতি জানানোর পাশাপাশি যুদ্ধের জন্যও প্রস্তুত হয়ে যায় তবে তার সাথে যুদ্ধ করা হবে যতক্ষণ না সে ফিরে আসে। ইমাম মালেক মুয়াত্তাগ্রন্থে বলেন, “যদি কেউ যাকাত দিতে অস্বীকৃতি জানায় এবং মুসলমানরা তার থেকে যাকাত নিতে অক্ষম হয়ে যায়, তবে তাদের উপর ওয়াজিব হবে তার সাথে যু্দ্ধ করা”, ইবনে বাত্তাল রহ বলেন, ইমাম মালেকের উদ্দেশ্য হলো, যদি যাকাত ফরয হওয়াকে স্বীকার করে যাকাত দিতে অস্বীকার জানায় তাহলে যুদ্ধ করতে হবে, আর এ ব্যাপারে ইমামদের মাঝে কোন মতভেদ নেই। -ফাতহুল বারী, ১২/২৭৫-২৭৬
তৃতীয় দলিল:
عَن طَارِقِ بْنِ شِهَابٍ، قَالَ: «قَالَ سَلْمَانُ لِزَيْدِ بْنِ صُوحَانَ: كَيْفَ أَنْتَ إذَا اقْتَتَلَ الْقُرْآنُ وَالسُّلْطَانُ؟ قَالَ: إذًا أَكُونُ مَعَ الْقُرْآنِ، قَالَ: نِعْمَ الزُّويَيْدُ: إذًا أَنْتَ». أخرجه ابن أبي شيبة: (30926)
তারেক বিন শিহাব বলেন, সালমান রাযিআল্লাহু আনহু যায়েদ বিন সুহানকে জিজ্ঞেস করলেন, যখন (আহলে) কুরআন ও শাসকের মধ্যে যুদ্ধ হবে তখন তুমি কি করবে, যায়েদ বললেন, আমি (আহলে) কুরআনের পক্ষ অবলম্বন করবো, সালমান রাযিআল্লাহু আনহু (খুশি হয়ে) বললেন, তাহলে তুমি কতই না উত্তম যায়েদ হবে। -মুসান্নাফে ইবনে আবী শাইবা, ৩০৯২৬
عَن كَعْبٍ، قَالَ: «يَقْتَتِلُ الْقُرْآنُ وَالسُّلْطَانُ قَالَ: فَيَطَأُ السُّلْطَانُ عَلَى صِمَاخِ الْقُرْآنِ فَلأْيًا بِلأْيِ، وَلأْيًا بِلأي، مَا تَنْفَلتُنَّ مِنْهُ». أخرجه ابن أبي شيبة: (30927) وأبو عبيد في فضائل القرآن: (132)
মুসান্নাফে ইবনে আবী শাইবার টিকায় শায়েখ আওয়ামা বলেন,
والمعنى - والله أعلم سيكون اقتتال بين أهل القرآن والسلطان، وتكون الغلبة لأهل القرآن، وتكون شدَّةً بشدةٍ، قلَّ ما تنفلتن وتنجون منها. (تعليق الشيخ عوامه على المصنف : 15/562 ط. دار القبلة)
উল্লিখিত আছরটির অর্থ হলো, অচিরেই কুরআনের অনুসারী ও বাদশার অনুসারীদের মধ্যে যুদ্ধ হবে, এবং কুরআনের অনুসারীদেরই বিজয় হবে। তবে হবে যুদ্ধ ঘোরতর, তোমাদের কম লোকই তার ভয়াবহতা থেকে মুক্তি পাবে। -মুসান্নাফে ইবনে আবী শাইবা, ১৫/৫৬২
তিন. বিধান পরিবর্তনকারী শাসকদের বিপক্ষে যুদ্ধ করার ব্যাপারে আলেমদের বক্তব্য:-
১. হানাফী মাযহাবের শীর্ষাস্থনীয় ফকিহ ইমাম তহাবী রহ. বলেন,
سمعت محمد بن عيسى بن فليح بن سليمان الخزاعي أبا عبد الله يذكر: أن العمري العابد، وهو عبد الله بن عبد العزيز بن عبد الله بن عمر بن الخطاب، جاء إلى مالك، فقال له: يا أبا عبد الله، قد نرى هذه الأحكام التي قد بُدِّلَت، أفيسعنا مع ذلك التخلف عن مجاهدة من بَدَّلها، فقال له مالك: إن كان معك اثنا عشر ألفا مثلك لم يسعك التخلف عن ذلك، وإن لم يكن معك هذا العدد من أمثالك فأنت في سعة من التخلف عن ذلك، وكان هذا الجواب من مالك أحسن جواب، وإنما أخذه عندنا، والله أعلم من قول النبي صلى الله عليه وسلم في حديث ابن عباس الذي رويناه: "ولن يؤتى اثنا عشر ألفا من قلة "، وبالله التوفيق. (شرح مشكل الآثار: 2/51)
আমি মুহাম্মদ বিন ঈসাকে বলতে শুনেছি, আব্দুল্লাহ বিন আব্দুল আযীয আলউমরী ইমাম মালেকের কাছে এসে জিজ্ঞেস করেন, এই যে আমরা শরীয়তের বিধি-বিধান পরিবর্তন হতে দেখছি, এখন কি আমাদের জন্য বিধান পরিবর্তনকারীদের সাথে জিহাদ না করে বসে থাকা বৈধ হবে? ইমাম মালেক বললেন, যদি তোমার সাথে তোমার মত বারোহাজার লোক থাকে তাহলে তোমার জন্য যুদ্ধ হতে বিরত থাকা বৈধ হবে না। আর যদি না থাকে তাহলে তোমার জন্য জিহাদ না করার অবকাশ রয়েছে। (ইমাম তহাবী বলেন) ইমাম মালেক যে উত্তর দিয়েছে তা অত্যন্ত সুন্দর, আমাদের ধারণা অনুযায়ী ইমাম মালেক রহ. এই উত্তর দিয়েছেন রাসূল সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামের হাদিস, “বারোহাজারের বাহিনী সংখ্যাসল্পতার কারণে কখনো পরাজয় বরণ করবে না” এর ভিত্তিতে।
বর্তমান যুগের জিহাদবিরোধী আলেমদের নিকট এসে কেউ উক্ত প্রশ্ন করলে সে নির্দ্বিধায় বলে দিবে, “বিধান পরিবর্তনের কারণে শাসক কাফের হয়ে যায় না। আর কুফর ব্যতীত শাসকের বিপক্ষে বিদ্রোহ করা বৈধ নয়। তাছাড়া জিহাদের জন্য ইমাম প্রয়োজন। আমাদের তো ইমাম নেই।” অথচ ইমাম মালেক এসব কিছুই বলেননি। বরং তিনি বলেছেন, “তোমার সাথে তোমার মতো বারোহাজার লোকের বাহিনী থাকলে যুদ্ধ করা ওয়াজিব হয়ে যাবে।” এ থেকে সুস্পষ্টরুপে বুঝে আসে, শক্তি ও সক্ষমতা থাকলে বিধান পরিবর্তনকারী শাসকের বিপক্ষে যু্দ্ধ করা ওয়াজিব। হাঁ, ইমাম মালেক এটাও বলেছেন, বারোহাজার লোক না থাকলে তখন (শক্তি না থাকার কারণে) যুদ্ধ ওয়াজিব হবে না। তবে বিধান পরিবর্তন কারী শাসকের বিপক্ষে যুদ্ধ করা বৈধ নয়, যারা করবে তারা খারেজী, এমন কিছুই ইমাম মালেক বলেননি।
পাঠক আরো লক্ষ্য করুন, এখানে ইমাম তহাবী বিধান পরিবর্তনকারী শাসকের বিরুদ্ধে যুদ্ধের ব্যাপারে ইমাম মালেকের ফতোয়াকে সমর্থণ করেছেন, তার ফতোয়ার প্রশংসা করছেন, অথচ ইমাম তহাবী যালেম শাসকের বিপক্ষে যুদ্ধকে বৈধ মনে করেন না, তিনি তার রচিত আকীদার কিতাবে সুষ্পষ্টরুপে বলেছেন,
ولا نرى الخروج على أئمتنا وولاة أمورنا. وإن جاروا. (العقيدة الطحاوية: ص: 24 ط. دار ابن حزم: 1416)
‘আমরা শাসক ও গভর্ণরদের বিপক্ষে বিদ্রোহকে বৈধ মনে করে না। যদিও তারা যুলুম করে। -আলআকীদাতুত তহাবীয়্যাহ, পৃ: ২৪
এ থেকে সুষ্পষ্টরুপে প্রতীয়মান হয় যে, যালেম শাসকের হুকুম আর বিধান পরিবর্তনকারী শাসকের হুকুম এক নয়, যালেম শাসকের বিপক্ষে বিদ্রোহ করতে যে সব হাদিসে নিষেধ করা হয়েছে তা বিধান পরিবর্তনকারী শাসকের ক্ষেত্রে প্রজোয্য নয়।
পাঠক যদি এর সাথে ইমামুল আসর আল্লামা আনোয়ার শাহ কাশ্মিরীর এই কর্মনীতি যুক্ত করেন যে, “তিনি কোন মাসয়ালায় ইমাম আবু হানীফার বক্তব্য না পেলে ইমাম আবু ইউসুফের মত গ্রহণ করতেন, আবু ইউসুফের মত না পেলে ইমাম মুহাম্মদের মত, তাও না পেলে ইমাম তহাবীর মত তালাশ করতেন। যদি তিনি ইমাম তহাবীর মত পেয়ে যেতেন তাহলে সেটাই গ্রহণ করতেন” তাহলে আশা করি বিধান পরিবর্তনকারী শাসকের সাথে যুদ্ধই যে হানাফী মাযহাবের সিদ্ধান্ত তা বুঝতে আপনার খুব বেশি বেগ পেতে হবে না। আগামী পর্বে ইনশাআল্লাহ আমরা দেখবো যে, ইমাম আনোয়ার শাহ কাশ্মিরী ও মাওলানা আশরাফ আলী থানভী রহ. এর মতও এমনই এবং ইমাম আবু হানিফার মতও এমন হওয়াই যুক্তিযুক্ত (কাশ্মিরী রহিমাহুল্লাহুর মূলনীতিটি জানার জন্য দেখুন- তারাজিমু সিত্তাতিম মিনাল ফুকাহা, শায়েখ আব্দুল ফাত্তাহ আবু গুদ্দাহ, পৃ: ৩৯ প্রকাশনা: মাকতাবুল মাতবুয়াতিল ইসলামিয়্যাহ, ১৪১৭ হি.
২. কাযী ইয়ায রহ বলেন,
لا خلاف بين المسلمين أنه لا تنعقد الإمامة للكافر، ولا تستديم له إذا طرأ عليه، وكذلك إذا ترك إقامة الصلوات والدعاء إليها، وكذلك عند جمهورهم البدعة. وذهب بعض البصريين إلى أنها تنعقد لها وتستديم على التأويل، فإذا طرأ مثل هذا على وال من كفر أو تغيير شرع أو تأويل بدعة، خرج عن حكم الولاية وسقطت طاعته، ووجب على الناس القيام عليه وخلعه، ونصب إمام عدل أو وال مكانه إن أمكنهم ذلك. (إكمال المعلم: 6/246 ط. دار الوفاء: 1419 ه.)
উলামায়ে কেরাম সবাই এ ব্যাপারে একমত পোষণ করেছেন যে, কোনো কাফেরকে খলীফা নিযুক্ত করলে সে খলীফা হবে না এবং কোনো খলীফার মাঝে যদি কুফরী প্রকাশ পায়, তাহলে সে স্বয়ংক্রিয়ভাবে অপসারিত হয়ে যাবে। তিনি বলেন, এমনিভাবে শাসক যদি নামায প্রতিষ্ঠা করা অথবা নামাযের দিকে আহবান করা ছেড়ে দেয় (তাহলেও)। তিনি আরও বলেন, জুমহুরের মতে শাসক যদি বিদ‘আত করে (তবে তাদের হুকুম একই)। কতিপয় বসরী আলেমের মত হলো, বিদ‘আতির ইমামত সাব্যস্ত হবে এবং সেটা স্থায়ী হবে, কেননা সে তা’বিলকারী। অতএব শাসক যদি এজাতীয় কাজগুলোর কোন একটি, যেমন, কুফর, শরীয়া পরিবর্তন অথবা বিদ‘আতে লিপ্ত হয়, তবে সে পদচ্যুত হয়ে যাবে এবং তার আনুগত্যের অপরিহার্যতা শেষ হয়ে যাবে। মুসলমানদের উপর ফরজ হবে, তার বিরুদ্ধে বিদ্রোহ করা, তাকে অপসারণ করা এবং একজন ন্যায়পরায়ণ খলিফা নিযুক্ত করা, যদি এটা তাদের পক্ষে সম্ভব হয়। -ইকমালুল মু’লিম, ৬/২৪৬
৩. ইমাম নববী রহিমাহুল্লাহও (মৃ: ৬৭৬ হি.) কাযী ইয়ায রহিমাহুল্লাহুর উপরোল্লিখিত বক্তব্য সমর্থণ করেছেন। তিনি বলেন,
قال القاضي عياض: أجمع العلماء على أن الإمامة لا تنعقد لكافر، وعلى أنه لو طرأ عليه الكفر انعزل. قال: وكذا لو ترك إقامة الصلوات والدعاء إليها. قال: وكذلك عند جمهورهم البدعة. قال: وقال بعض البصريين: تنعقد له وتستدام له، لأنه متأول. قال القاضي: فلو طرأ عليه كفر وتغيير للشرع أو بدعة خرج عن حكم الولاية وسقطت طاعته، ووجب على المسلمين القيام عليه وخلعه ونصب إمام عادل إن أمكنهم ذلك. (شرح مسلم للنووي: 12/229 ط. دار إحياء التراث العربي: 1392)
কাযী ইয়ায রহিমাহুল্লাহ বলেন, উলামায়ে কেরাম সবাই এ ব্যাপারে একমত পোষণ করেছেন যে, কোনো কাফেরকে খলীফা নিযুক্ত করলে সে খলীফা হবে না এবং কোনো খলীফার মাঝে যদি কুফরী প্রকাশ পায়, তাহলে সে স্বয়ংক্রিয়ভাবে অপসারিত হয়ে যাবে। তিনি বলেন, এমনিভাবে শাসক যদি নামায প্রতিষ্ঠা করা অথবা নামাযের দিকে আহবান করা ছেড়ে দেয় (তাহলেও)। তিনি আরও বলেন, জুমহুরের মতে শাসক যদি বিদ‘আত করে (তবে তাদের হুকুম একই)। কতিপয় বসরী আলেমের মত হলো, বিদ‘আতির ইমামত সাব্যস্ত হবে এবং সেটা স্থায়ী হবে, কেননা সে তা’বিলকারী। কাযী ইয়ায বলেন, শাসকের উপর যদি কুফর আপতিত হয় এবং সে যদি শরীয়া পরিবর্তন করে অথবা বিদ‘আত করে, তবে সে পদচ্যুত হয়ে যাবে এবং তার আনুগত্যের অপরিহার্যতা শেষ হয়ে যাবে। মুসলমানদের উপর ফরজ হবে, সম্ভব হলে তার বিরুদ্ধে বিদ্রোহ করা, তাকে অপসারণ করা এবং একজন ন্যায়পরায়ণ খলিফা নিযুক্ত করা। -শরহু মুসলিম, ১২/২২৯
ইমাম নববী অন্যত্র বলেন,
لا يجوز الخروجُ على الخُلفاءِ بمجرَّدِ الظلمِ أو الفسق ما لم يُغَيِّرُوْا شيئا من قَواعد الإسلام.(شرح مسلم للنووي: باب حكم من فرق أمر المسلمين وهو مجتمع، 12 : 244 ط. دار إحياء التراث العربي:1392)
শুধুমাত্র জুলুম ও ফিসকের কারণে খলীফাদের বিরুদ্ধে বিদ্রোহ করা বৈধ নয়, যতক্ষণ না তারা ইসলামের কোনো মৌলিক বিধানকে পরিবর্তন করে। শরহে মুসলিম, ১২/২৬৬
এ পর্বে এখানেই শেষ করছি, আগামী পর্বে ইনশাআল্লাহ আরো কয়েকজন আলেমের বক্তব্য, পাশাপাশি এ মাসয়ালায় আল্লামা তাকী উসমানীর বক্তব্যের পর্যালোচনাও পেশ করবো ইনশাআল্লাহ।
প্রথম পর্বের লিংক -
দ্বিতীয় পর্বের লিংক
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